000 | 02839nam a22002537a 4500 | ||
---|---|---|---|
003 | IN-BdCUP | ||
005 | 20240805153015.0 | ||
008 | 240805b ii ||||| |||| 00| 0 eng d | ||
020 | _a9789355181572 | ||
040 |
_beng _cIN-BdCUP |
||
041 | _aeng | ||
082 |
_a294.3443 _bDAN |
||
100 | _aDangi, Indira | ||
245 |
_aVipshyana / _cIndira Dangi |
||
250 | _a3rd Edition | ||
260 |
_aNew Delhi: _bVaani Prakshan Group, _c2023. |
||
300 |
_a151p.; _e30 cm. _fHB |
||
520 | _aविपश्यना - कौन हूँ? क्यों हूँ? मुझे क्या चाहिए? जीवन में सुख की परिभाषा क्या है? 'विपश्यना' अपने भीतर के प्रकाश में बाहर के विश्व को देखना है—ये विशेष प्रकार से देखना, ये जीना, ये सत्य के अभ्यास; यही उपन्यास की तलाश है, यही तलाश लेखिका की भी! उपन्यास में दो नायिकाएँ हैं— दोनों ही अपने को नये सिरे से खोजने निकली है। एक को अपने को पाना है तो दूसरी को भी आख़िर अपने तक ही पहुँचना है, भले ही रास्ता माँ को खोजने का हो। पूरा उपन्यास, माँ के लिए तरसता एक मन है; क्या कीजिये कि जहाँ सबसे ज़्यादा कुछ निजी था, कुछ बहुत गोपनीय, वहीं से उपन्यास आरम्भ हुआ। लिखते समय, लेखिका पात्रों के साथ इस कथा-यात्रा में सहयात्री बनती है, मार्गदर्शक नहीं। इस उपन्यास में भोपाल गैस त्रासदी जितना कुछ है; उतनी विराट मानवीय त्रासदी को महसूस करना, अपने मनुष्य होने को फिर से महसूस करने के जैसा है। जो जीवन बोध था, जो दुःख था, जो प्रश्न थे अब 'विपश्यना' आपके हाथों में है। | ||
650 | _aLiterature | ||
650 | _aHindi Story | ||
700 | _aदांगी, इंदिरा | ||
880 |
_6245 _aविपश्यना / इंदिरा दांगी |
||
942 |
_2ddc _cBK _n0 |
||
999 |
_c53607 _d53607 |