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003 IN-BdCUP
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_cIN-BdCUP
041 _ahin
082 _a891.433
_bSIN
100 _aSingh, Kirtikumar
245 0 _aBas Itna /
_cSingh, Kirtikumar & सिंह, कर्तिकुमार
260 _aNew Delhi :
_bVani Prakashan,
_c2017.
300 _a167 p. ;
_c18 cm.
520 _aहिन्दी के शीर्षस्थ लघुकथाकार कीर्तिकुमार सिंह का यह चौथा लघुकथा संग्रह है। गुणात्मक और परिमाणात्मक, दोनों दृष्टियों से कीर्तिकुमार सिंह ने लघुकथा को अत्यन्त समृद्ध किया है। लघुकथा को हिन्दी की एक सम्पूर्ण और सम्मानजनक विधा के रूप में स्थापित करने का बहुत कुछ श्रेय उन्हीं को जाता है। पर्याप्त मात्रा में लघुकथाएँ लिखना अपने आपमें एक कठिन और चुनौतीपूर्ण कार्य है और इस चुनौती को हिन्दी में गिनेचुने कथाकारों ने ही स्वीकार किया है। लघुकथा आधुनिक हिन्दी साहित्य की अत्यन्त लोकप्रिय विधा है, परन्तु समस्या यह है कि पाठकों की प्यास तृप्त करने के लिए पर्याप्त सामग्री नहीं है। जिन कथाकारों ने लघुकथा विधा को साध लिया है, वे इस रिक्तता को भरने के लिए प्रयासरत हैं। कीर्तिकुमार सिंह इन कथाकारों में अग्रगण्य हैं।
650 _aसिंह, कर्तिकुमार
650 _aBas Itna
650 _aबस इतना
700 _aसिंह, कर्तिकुमार
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_aबस इतना /
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