000 | 02221nam a2200253Ia 4500 | ||
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001 | 29456 | ||
003 | IN-BdCUP | ||
005 | 20230421155559.0 | ||
008 | 230413s2023 000 0 hin | ||
020 | _a8126707356 | ||
040 |
_beng _cIN-BdCUP |
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041 | _ahin | ||
082 |
_a891.434 _bSIN |
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100 | _aSingh, Namvar | ||
245 | 0 |
_aChhayawad / _cSingh, Namvar & सिंह, नामवर |
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260 |
_aNew Delhi : _bRajkamal Prakashan Pvt Ltd, _c2007. |
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300 |
_a154 ; _c18 cm. |
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520 | _aछायावाद पर अनेक पुस्तकों के रहते हुए भी यह पुस्तक दृष्टि की मौलिकता; विवेचन की स्पष्टता तथा आलोचना-शैली की सर्जनात्मकता के लिए पिछले दशक की सबसे लोकप्रिय पुस्तक रही है! लेखक के अनुसार इस पुस्तक में छायावाद की काव्यगत विशेषताओं को स्पष्ट करते हुए छाया-चित्रों में निहित सामाजिक सत्य का उदघाटन किया गया है! पुस्तक में कुल बारह अध्याय हैं जिनके शीर्षक क्रमशः इस प्रकार है : प्रथम राशी, केवल में केवल में, एक कर दे पृथ्वी आकाश, पल-पल परिवर्तित प्रकृति वेश, देवि मान-सहचरी प्राण, जागो फिर एक बार, कल्पना के कानन की रानी, रूप विन्यास, पद विन्यास, खुल गए छंद के बंध, जिसके आगे रह नहीं, तथा परंपरा और प्रगति! | ||
650 | _aChayavaad | ||
650 | _aछायावाद | ||
700 | _aसिंह, नामवर | ||
880 |
_6245 _aछायावाद / |
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942 |
_2ddc _cBK |
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999 |
_c39049 _d39049 |