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विपश्यना / इंदिरा दांगी

Vipshyana / Indira Dangi

By: Contributor(s): Material type: TextTextLanguage: English Publication details: New Delhi: Vaani Prakshan Group, 2023.Edition: 3rd EditionDescription: 151p.; 30 cm. HBISBN:
  • 9789355181572
Subject(s): DDC classification:
  • 294.3443 DAN
Summary: विपश्यना - कौन हूँ? क्यों हूँ? मुझे क्या चाहिए? जीवन में सुख की परिभाषा क्या है? 'विपश्यना' अपने भीतर के प्रकाश में बाहर के विश्व को देखना है—ये विशेष प्रकार से देखना, ये जीना, ये सत्य के अभ्यास; यही उपन्यास की तलाश है, यही तलाश लेखिका की भी! उपन्यास में दो नायिकाएँ हैं— दोनों ही अपने को नये सिरे से खोजने निकली है। एक को अपने को पाना है तो दूसरी को भी आख़िर अपने तक ही पहुँचना है, भले ही रास्ता माँ को खोजने का हो। पूरा उपन्यास, माँ के लिए तरसता एक मन है; क्या कीजिये कि जहाँ सबसे ज़्यादा कुछ निजी था, कुछ बहुत गोपनीय, वहीं से उपन्यास आरम्भ हुआ। लिखते समय, लेखिका पात्रों के साथ इस कथा-यात्रा में सहयात्री बनती है, मार्गदर्शक नहीं। इस उपन्यास में भोपाल गैस त्रासदी जितना कुछ है; उतनी विराट मानवीय त्रासदी को महसूस करना, अपने मनुष्य होने को फिर से महसूस करने के जैसा है। जो जीवन बोध था, जो दुःख था, जो प्रश्न थे अब 'विपश्यना' आपके हाथों में है।
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Book Book Ranganathan Library Hindi 294.3443 DAN (Browse shelf(Opens below)) Available 048892

विपश्यना - कौन हूँ? क्यों हूँ? मुझे क्या चाहिए? जीवन में सुख की परिभाषा क्या है? 'विपश्यना' अपने भीतर के प्रकाश में बाहर के विश्व को देखना है—ये विशेष प्रकार से देखना, ये जीना, ये सत्य के अभ्यास; यही उपन्यास की तलाश है, यही तलाश लेखिका की भी! उपन्यास में दो नायिकाएँ हैं— दोनों ही अपने को नये सिरे से खोजने निकली है। एक को अपने को पाना है तो दूसरी को भी आख़िर अपने तक ही पहुँचना है, भले ही रास्ता माँ को खोजने का हो। पूरा उपन्यास, माँ के लिए तरसता एक मन है; क्या कीजिये कि जहाँ सबसे ज़्यादा कुछ निजी था, कुछ बहुत गोपनीय, वहीं से उपन्यास आरम्भ हुआ। लिखते समय, लेखिका पात्रों के साथ इस कथा-यात्रा में सहयात्री बनती है, मार्गदर्शक नहीं। इस उपन्यास में भोपाल गैस त्रासदी जितना कुछ है; उतनी विराट मानवीय त्रासदी को महसूस करना, अपने मनुष्य होने को फिर से महसूस करने के जैसा है। जो जीवन बोध था, जो दुःख था, जो प्रश्न थे अब 'विपश्यना' आपके हाथों में है।

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