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संदेश रासक /

Sandesh rasak / Tripathi, Vishavnath; त्रिपाठी, विशवनाथ ; Dwivedi, Hazariprasad & द्विवेदी, हज़ारीप्रसाद

By: Contributor(s): Material type: TextTextLanguage: Hindi Publication details: New Delhi : Rajkamal Prakashan, 2015.Description: 236 p. ; 20 cmISBN:
  • 9788126705856
Subject(s): DDC classification:
  • 891.43109 TRI
Summary: 'संदेश-रासक', रासक काव्यरूप की विशेषताओं से संयुक्त तीन प्रक्रमों में विभाजित दो सौ तेईस छंदों का एक छोटा-सा विरह काव्य है, जिसमें कथावस्तु का कोई विशेष महत्त्व नहीं है। विरहिणी नायिका का पथिक के द्वारा अपने प्रिय के पास संदेश भेजना भारतीय साहित्य में अति प्रचलित काव्य-रूढ़ि है। किन्तु 'संदेश-रासक' की विशेषता उसके कथानक में नहीं, उसकी अभिव्यक्ति और कथनशैली में है। महाकाव्य या भारी-भरकम काव्य न होने के कारण अद्दहमाण को छोटी-छोटी बातों का विशद वर्णन करने का अवसर नहीं था फिर भी जिस मार्मिकता, संयम और सहृदयता का परिचय कवि ने दिया है वह उसकी कवित्व शक्ति, पांडित्य, परंपरा-ज्ञान और लोकवादिता की पूर्ण प्रतिष्ठा पाठक के हृदय में कर देती है। जिस प्रकार पात्र दुर्लभ होने पर लोग शतपत्रिका में ही आश्वस्त हो लेते हैं, उसी प्रकार जिन लोगों को प्राचीन कवियों की रचनाएँ रस नहीं दे पातीं उन सबको 'संदेश-रासक' का कवि काव्य-रस पान के लिए निमंत्रण देता है। इससे यह भी ज्ञात होता है कि इस ग्रंथ की रचना करते समय अद्दहमाण का दृष्टिकोण लोकवादी था। उन्होंने 'संदेश-रासक' का प्रणयन, साधारण जनों को दृष्टि में रखकर, उनके आनंद और विनोद के लिए किया था, पंडितों और विद्वानों के लिए नहीं। वे 'संदेश-रासक' के पाठक का हाथ पकड़कर कहते हैं कि जो लोग पंडित और मूर्ख में भेद करते हैं अर्थात् जो अपने को साधारण जनों की अपेक्षा अधिक विद्वान् समझते हैं, उनके सामने इसे मत पढ़ना।
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Book Book Ranganathan Library 891.43109 TRI (Browse shelf(Opens below)) Available 036035

'संदेश-रासक', रासक काव्यरूप की विशेषताओं से संयुक्त तीन प्रक्रमों में विभाजित दो सौ तेईस छंदों का एक छोटा-सा विरह काव्य है, जिसमें कथावस्तु का कोई विशेष महत्त्व नहीं है। विरहिणी नायिका का पथिक के द्वारा अपने प्रिय के पास संदेश भेजना भारतीय साहित्य में अति प्रचलित काव्य-रूढ़ि है। किन्तु 'संदेश-रासक' की विशेषता उसके कथानक में नहीं, उसकी अभिव्यक्ति और कथनशैली में है। महाकाव्य या भारी-भरकम काव्य न होने के कारण अद्दहमाण को छोटी-छोटी बातों का विशद वर्णन करने का अवसर नहीं था फिर भी जिस मार्मिकता, संयम और सहृदयता का परिचय कवि ने दिया है वह उसकी कवित्व शक्ति, पांडित्य, परंपरा-ज्ञान और लोकवादिता की पूर्ण प्रतिष्ठा पाठक के हृदय में कर देती है। जिस प्रकार पात्र दुर्लभ होने पर लोग शतपत्रिका में ही आश्वस्त हो लेते हैं, उसी प्रकार जिन लोगों को प्राचीन कवियों की रचनाएँ रस नहीं दे पातीं उन सबको 'संदेश-रासक' का कवि काव्य-रस पान के लिए निमंत्रण देता है। इससे यह भी ज्ञात होता है कि इस ग्रंथ की रचना करते समय अद्दहमाण का दृष्टिकोण लोकवादी था। उन्होंने 'संदेश-रासक' का प्रणयन, साधारण जनों को दृष्टि में रखकर, उनके आनंद और विनोद के लिए किया था, पंडितों और विद्वानों के लिए नहीं। वे 'संदेश-रासक' के पाठक का हाथ पकड़कर कहते हैं कि जो लोग पंडित और मूर्ख में भेद करते हैं अर्थात् जो अपने को साधारण जनों की अपेक्षा अधिक विद्वान् समझते हैं, उनके सामने इसे मत पढ़ना।

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