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लेखक का सिनेमा /

Lekhak ka cinema / Kunwar, Narain & कुंवर, नारायण

By: Contributor(s): Material type: TextTextLanguage: Hindi Publication details: New Delhi : Rajkamal Prakashan, 2017.Description: 201 p. ; 18 cmISBN:
  • 9788126730476
Subject(s): DDC classification:
  • 792 CHA
Summary: कुँवर नारायण द्वारा लिखित और गीत चतुर्वेदी द्वारा सम्पादित किताब.. कुँवर नारायण अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित कवि हैं.. वह विश्व सिनेमा के गहरे जानकारों में हैं.. उन्होंने आधी सदी तक सिनेमा पर गंभीर, विवेचनापूर्ण लेखन किया है, व्याख्यान दिए हैं.. लेखक का सिनेमा उन्हीं में से कुछ प्रमुख लेखों, टिप्पणियों, व्याख्यानों और संस्मरणों से बनी पुस्तक है.. इसमें अनेक अंतर्राष्ट्रीय फिल्मोत्सवों की विशेष रपटें हैं, जो लेखकीय दृष्टिकोण से लिखी गई हैं और बहुत महत्वपूर्ण हैं.. इस किताब में वे कला, जीवन, समाज और सिनेमा, इन सबके बीच के संबंधों को परिभाषित, विश्लेषित करते हुए चलते हैं.. इसमें सिनेमा के व्याकरण की आत्मीय मीमांसा है.. प्रसिद्ध फिल्मों व निर्देशकों के अलावा उन उन निर्देशकों व फिल्मों के बारे में पढना एक धनात्मक अनुभव होगा, जिनका नाम इक्कीसवीं सदी के इस दूसरे दशक तक कम आ पाया.. हिंदी किताबों से जुडी नई पीढ़ी, जो विश्व सिनेमा में दिलचस्पी रखती है, के लिए इस किताब का दस्तावेजी महत्व भी है.. गीत चतुर्वेदी के शब्दों में, अर्जेंटीना के लेखक बोर्हेस की प्रसिद्ध पंक्तियाँ हैं-'मैं वे सारे लेखक हूँ जिन्हें मैंने पढ़ा है, वे सारे लोग हूँ जिनसे मैं मिला हूँ, वे सारी स्त्रियाँ हूँ, जिनसे मैंने प्यार किया है, वे सारे शहर हूँ जहाँ मैं रहा हूँ..' कुँवर नारायण के सन्दर्भ में इसमें जोड़ा जा सकता है कि मैं वे सारी फ़िल्में हूँ जिन्हें मैंने देखा है..
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कुँवर नारायण द्वारा लिखित और गीत चतुर्वेदी द्वारा सम्पादित किताब.. कुँवर नारायण अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित कवि हैं.. वह विश्व सिनेमा के गहरे जानकारों में हैं.. उन्होंने आधी सदी तक सिनेमा पर गंभीर, विवेचनापूर्ण लेखन किया है, व्याख्यान दिए हैं.. लेखक का सिनेमा उन्हीं में से कुछ प्रमुख लेखों, टिप्पणियों, व्याख्यानों और संस्मरणों से बनी पुस्तक है.. इसमें अनेक अंतर्राष्ट्रीय फिल्मोत्सवों की विशेष रपटें हैं, जो लेखकीय दृष्टिकोण से लिखी गई हैं और बहुत महत्वपूर्ण हैं.. इस किताब में वे कला, जीवन, समाज और सिनेमा, इन सबके बीच के संबंधों को परिभाषित, विश्लेषित करते हुए चलते हैं.. इसमें सिनेमा के व्याकरण की आत्मीय मीमांसा है.. प्रसिद्ध फिल्मों व निर्देशकों के अलावा उन उन निर्देशकों व फिल्मों के बारे में पढना एक धनात्मक अनुभव होगा, जिनका नाम इक्कीसवीं सदी के इस दूसरे दशक तक कम आ पाया.. हिंदी किताबों से जुडी नई पीढ़ी, जो विश्व सिनेमा में दिलचस्पी रखती है, के लिए इस किताब का दस्तावेजी महत्व भी है.. गीत चतुर्वेदी के शब्दों में, अर्जेंटीना के लेखक बोर्हेस की प्रसिद्ध पंक्तियाँ हैं-'मैं वे सारे लेखक हूँ जिन्हें मैंने पढ़ा है, वे सारे लोग हूँ जिनसे मैं मिला हूँ, वे सारी स्त्रियाँ हूँ, जिनसे मैंने प्यार किया है, वे सारे शहर हूँ जहाँ मैं रहा हूँ..' कुँवर नारायण के सन्दर्भ में इसमें जोड़ा जा सकता है कि मैं वे सारी फ़िल्में हूँ जिन्हें मैंने देखा है..

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